राजस्थान की सुनहरी धरती पर बसे रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान की पहचान सिर्फ बाघों से ही नहीं, बल्कि उसके इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता से भी जानी जाती है। मैंने (संजू) और माही मैडम ने जब इस जगह की यात्रा करने का फैसला किया, तो मेरे मन में केवल एक ही ख्वाहिश थी, जंगल के राजा बंगाल […]
राजस्थान की सुनहरी धरती पर बसे रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान की पहचान सिर्फ बाघों से ही नहीं, बल्कि उसके इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता से भी जानी जाती है। मैंने (संजू) और माही मैडम ने जब इस जगह की यात्रा करने का फैसला किया, तो मेरे मन में केवल एक ही ख्वाहिश थी, जंगल के राजा बंगाल टाइगर को उसके असली घर में देखने की। साथ ही मन में बहुत सारे सवाल भी आ रहें थे,उन से जुडी हुई लेकिन अंदर ही अंदर इस बात की ख़ुशी थी की बाघ को देखेगें। इसी सोच के साथ हमदोनो ने प्लान कर के नोएडा से सुबह अपने कार से निकल पड़े राजस्थान के लिए। रास्तें बहुत लम्बी थी इसलिए हमदोनों ने बीच -बीच में रूककर आराम किया इसके बार आगे बढे।
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सबसे पहले हम लोग सुबह उठे और नोएडा से निकल गए थे तो हमने रास्तें में एक ढावा पर अपनी कार रुकी और चाय के साथ नास्ता किया। थोड़ी देर आराम किया ,इसके बाद यहाँ से निकल कर आगे लगभग 2 -3 घंटे बाद मुझे भूख लगी तो मैंने माही मैडम से कहाँ अब कहीं रुक कर लंच कर लेते है फिर आगे जाया जाएगा। इसके बाद हमलोग एक होटल में रुके वहां लंच कर के थोड़ी देर आराम किया। फिर यहाँ से आगे के लिए निकल गए। हमलोग शाम में सवाई माधोपुर पहुंच गए। सवाई माधोपुर में ही रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान था। लेकिन शाम होने के वजह से हमलोग गहने नहीं जा सकते थे। इसीलिए हमने रूम बुक किया और आराम करने लगे,क्योकि अगले दिन हमे नेशनल पार्क का सफर करना था। साथ यहाँ के एक दो जगह और भी घूमने वाले थे जो यहां का फेमस स्थान है। तो चलिए जानतें है इस ब्लॉग के माध्यम से की हमने यहाँ क्या -क्या किया ,कहाँ -कहाँ घुमा और इससे जुडी इतिहास के बारें में।
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वन्यजीव का जीवन और रोमांच का एक भरपूर खजाना, रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान जो कि अरावली और विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं सवाई माधोपुर में स्थित है। यहाँ की प्राचीन खंडहर अतीत के राजवंशों की याद दिलाती हैं और प्रकृति की प्राकृतिक सुंदरता घने जंगलों पर राज करने वाले मूल राजाओं, यानी बाघों की उपस्थिति को और भी इसकी सुंदरता को निखारती है। रणथंभौर में कदम पड़ते ही आपको ऐसा लगेगा कि प्रकृति आपको जीवित रहने, लचीलेपन और शिकारी-शिकार के सामंजस्यपूर्ण नृत्य का पूरा नज़ारा दे रही है। ऐसा माना जाता है कि एक सयम था जब यह ज़मीन शिकारियों से भरी रहती थी, जिससे प्रजातियाँ काफ़ी हद तक खतरे में पड़ जाती थीं। लेकिन वही आज यह एक सुरक्षात्मक शरणस्थली बन गई है।
राजस्थान के सवाई माधोपुर ज़िले में स्थित रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान आज भारत के प्रमुख टाइगर रिज़र्व और राष्ट्रीय उद्यानों में गिना जाता है। लेकिन इसकी पहचान केवल वन्यजीवों तक सीमित नहीं है, इसका इतिहास भी उतना ही समृद्ध और रोचक है। रणथंभौर क्षेत्र का सबसे बड़ा ऐतिहासिक आकर्षण है रणथंभौर किला, जिसका निर्माण लगभग 10वीं शताब्दी में हुआ। इस किले पर कई राजवंशों ने शासन किया – चंदेल, चौहान, दिल्ली सल्तनत और बाद में मुग़ल ने भी शासन किया। इस किले के आस पास इतना घना जंगल था की उसमें ढेर सारे जीव जंतु रहा करते थे ,लेकिन आज़ादी से पहले रणथंभौर क्षेत्र का इस्तेमाल राजपूत राजाओं और अंग्रेज़ अधिकारियों के लिए शिकारगाह (Hunting Ground) के रूप में किया जाने लगा। यहाँ बाघ और अन्य जंगली जानवरों का शिकार एक “खेल” माना जाता था। इसके बाद इसे अभ्यारण्य के तरह बना दिया गया ,इसके कुछ सालों बाद राष्ट्रीय उद्यान बना दिया गया। तो जानते है अभ्यारण्य से राष्ट्रीय उद्यान तक का सफर।
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1955 – इसे सवाई माधोपुर गेम सैंक्चुअरी घोषित किया गया।
1973 – भारत सरकार ने बाघों की घटती संख्या को बचाने के लिए इसे प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत शामिल किया।
1980 – रणथंभौर को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
बाद में इसके आस-पास के जंगल जैसे केवलादेव, सवाई मानसिंह और केलादेवी अभ्यारण्य भी इसमें शामिल किए गए।
आज के समय में रणथंभौर का क्षेत्रफल लगभग 392 वर्ग किलोमीटर है। जहाँ पर बंगाल टाइगर की स्थायी आबादी है और इसे भारत का सबसे अच्छा टाइगर वॉचिंग डेस्टिनेशन माना जाता है। इस जंगल में बाघों के अलावा तेंदुआ, लकड़बग्घा, भालू, नीलगाय, सांभर और 300 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
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मैं (संजू) और माही इन सभी चीज़ों के बारें में जानने के बाद यहाँ का सैर करने का सोचा था तो हमलोग अगली सुबह होते ही ,उठा और रेडी होकर नास्ता किया और होटल से निकल गए रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान घूमने के लिए। यहाँ घूमने के लिए आपको यहाँ के जंगल सफारी का लुप्त लेना पड़ेगा। क्योकि यहाँ के घने जंगल होने के वजह से यहाँ ऐसे ही घूमने सेफ नहीं होता है। इसलिए हमदोनों ने भी जंगल सफारी का टिकट लिया और घूमने के लिए निकल गए। यहाँ जंगल सफारी दो समय ही होता है सुबह और शाम। तो हमलोग ने सुबह की टिकट ली थी। फिर जंगल सफारी पर सवार हो कर हमने यहाँ टाइगर और वन्यजीव को देखा ,फिर फोटो क्लिक किया वीडियो बनाया। इसके बाद हमलोग यहाँ से घूम के निकल गए।
सुबह की सफारी
रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में सुबह 6:30 बजे से शुरू होकर 10 बजे तक चलता है, जहाँ आप खुद को कई गतिविधियों में व्यस्त पाएंगे। ध्यान से देखें क्योंकि हो सकता है कि आपको राजसी बंगाल टाइगर अपनी पूरी ताकत और पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए दिखाई दे सकते है।
शाम की सफारी
जैसे ही सूरज डूबता है जंगल सुनहरे रंग की अद्भुत चमक बिखेरता है, पूरा जंगल एक रहस्यमयी की तरह प्रकट होता है दोपहर 2.30 बजे से शाम 6 बजे तक आप रात के जीवों को जागते हुए देख सकते हैं, अगर आपको कुछ खौफनाक जीवों को देखना चाहते हैं तो रणथंभौर के बीचों-बीच जा सकते हैं, क्योंकि ढलती रोशनी में जंगल का राजा अपने राज़ खोलता है।
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इसके बाद हमलोग रणथंभौर के पास में बने कुछ रोजक जगह को देखा जो रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के बिलकुल पास में था। हमने पदम तालाब,राजबाग तालाब ,सूरज तालाब और कटार मंदिर और अन्य छोटे मंदिर को देखा और यहाँ के बारें में जाना। इन सब जगहों की खूबसूरती को कोई बयां नहीं कर सकता है। माही को ये सब जगह बेहद पसंद आया। हमदोनो यहाँ कुछ देर बैठ कर शांति का लुप्त उठाया। इसके बाद हम,लोग यहाँ से वापस होटल चले गए जहाँ हम पहले से रुकें हुए थे।
जब हम दोनों अगली सुबह उठे और वापस घर नोएडा के लिए निकले ,तो हम दोनों को यहाँ से आने का मन नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था एक बार फिर से इन वादियों में खो जाऊ। लेकिन हमें वापस घर आना था इसलिए हमलोग सुबह 8 बजे नोएडा के लिए निकल गए। आतें सयम हमदोनों वही की बातें करते आएं। बातें करते करते हम कब घर पहुंच गए पता ही नहीं चला। वैसे आतें टाइम हमलोग रास्तें में रूककर खाना खाये ,फिर एक बार चाय पियें। लेकिन हमलोग बीएस वही की यादों में खोयेहुए थे। अगर आपको भी वन्यजीव से प्यार है तो एक बार आप भी राजस्थान के रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान का भ्रमण जरूर करे। यह आपको यात्रा आपको पूरी जिंदगी याद रहने वाली है।
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Ans . यह राजस्थान के सवाई माधोपुर ज़िले में स्थित है, जो जयपुर से लगभग 180 किमी दूर है।
Ans . 1955 में इसे सवाई माधोपुर गेम सैंक्चुअरी घोषित किया गया, 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर का हिस्सा बना और 1980 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित हुआ।
Ans . यह अपने बंगाल टाइगर के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। यहाँ बाघों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने का अवसर मिलता है।
Ans . अक्टूबर से जून तक का समय उपयुक्त है।