कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है और इस स्वर्ग की खूबसूरत वादियों में एक नाम है दूधपथरी (Doodhpathri)। यह जगह श्रीनगर से लगभग 42 किलोमीटर दूर बडगाम जिले में स्थित है। हर साल यहाँ गर्मियों और सर्दियों में सैलानी आते हैं ताकि प्रकृति की गोद में कुछ पल सुकून और रोमांच के साथ […]
कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है और इस स्वर्ग की खूबसूरत वादियों में एक नाम है दूधपथरी (Doodhpathri)। यह जगह श्रीनगर से लगभग 42 किलोमीटर दूर बडगाम जिले में स्थित है। हर साल यहाँ गर्मियों और सर्दियों में सैलानी आते हैं ताकि प्रकृति की गोद में कुछ पल सुकून और रोमांच के साथ बिता सकें। मैं (संजू) और माहि मैडम ने भी कश्मीर ट्रिप के दौरान यहाँ का खूबसूरती को जीने और महसूस करने का एक शानदार अनुभव करने का सोचा और दूधपथरी के लिए रूम से निकल पड़ा। कहां जाता है कि यहां मई से सितंबर का समय जाने के लिए सबसे अच्छा है, क्योंकि मौसम आरामदायक रहता है और प्राकृतिक खूबसूरती अपने चरम पर होती है। तो हम आपको इस ब्लॉग में वहां का अपना एक्सपीरियंस और कुछ अनकहीं बातें बतातें है।
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कश्मीर की वादियों का जिक्र आते ही हर किसी की आँखों के सामने बर्फ से ढकी चोटियाँ, हरे-भरे मैदान और मनमोहक नज़ारे घूमने लगते हैं। इन्हीं वादियों के बीच बसा है दूधपथरी, जिसे “वैली ऑफ मिल्क” भी कहा जाता है। यह जगह अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और शांत वातावरण के लिए जानी जाती है। इसी अद्भुत जगह पर माही और मैंने (संजू ) अपनी ट्रिप के दौरान घुड़सवारी का आनंद लिया। ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों, चीड़ और देवदार के पेड़ों के बीच घोड़े की पीठ पर सवार होकर घूमना अपने आप में एक अलग ही अनुभव होता है। दूधपथरी के हरे मैदान और ठंडी हवाएँ इस सफर को और भी यादगार बना देते हैं।
घुड़सवारी करते हुए मैं और माही मैडम ने न केवल प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लिया, बल्कि स्थानीय गाइड से दूधपथरी की कहानियाँ भी सुनीं। यहाँ का शांत वातावरण और प्रकृति के बीच बिताए गए ये पल उनके दिलों में हमेशा के लिए बस गए। कश्मीर की यात्रा अगर की जाए और दूधपथरी की घुड़सवारी का मज़ा न लिया जाए, तो सफर अधूरा लगता है। यह अनुभव इस बात का प्रमाण है कि दूधपथरी केवल एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि प्रकृति की गोद में सुकून और रोमांच का संगम है।
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कश्मीर की इस वादी का नाम “दूधपथरी” यानी दूध की घाटी दो वजहों से पड़ा हैं जब हम घोड़े पे सवार हो कर वह का सुन्दर नज़ारा का आनंद उठा रहे थे तब मैंने वह के लोकल लोगों से बात की तो उन्होंने बताया की इस जगह के नाम के पीछे 2 कहानियां है जो हम लोग कोई वर्षों से अपने पूर्वजों से सुनते आ रहें है।
पहली कहानी चरवाहों की और दूसरी पानी का दूध का है।
चरवाहों की कहानी
यहाँ कभी संत शेख़ नूर-उद-दीन (Nund Reshi) आए थे। कहा जाता है कि उन्होंने अपनी प्यास बुझाने के लिए ज़मीन पर अपनी लाठी मारी, तो वहाँ से दूध जैसी सफेद धारा फूट पड़ी। बाद में जब लोग इस जगह पर आए, तो उस दूध जैसी धारा के कारण इसका नाम दूधपथरी पड़ा।
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पानी का दूध जैसा रंग
यहाँ बहने वाली धाराएँ इतनी साफ़ और झागदार हैं कि दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे दूध बह रहा हो। यही कारण है कि स्थानीय लोग इसे Valley of Milk कहते हैं।
1 . दूधपथरी पहले स्थानीय चरवाहों की ग्रीष्मकालीन चराई भूमि थी। गूज्जर और बकरवाल (स्थानीय खानाबदोश समुदाय) हर साल गर्मियों में अपने मवेशियों के साथ यहाँ आते थे।
2 . ब्रिटिश काल में भी इस घाटी को “मिनी स्विट्ज़रलैंड ऑफ कश्मीर” कहा जाने लगा क्योंकि यहाँ की वादियाँ यूरोपीय अल्पाइन घासभूमि जैसी लगती हैं।
3 . पर्यटक स्थल के रूप में दूधपथरी को पिछले कुछ दशकों में ही विकसित किया गया है। पहले यह जगह केवल स्थानीय लोगों और चरवाहों तक सीमित थी।
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1 . घोड़े की सवारी (Horse Riding) यहाँ का सबसे मशहूर आकर्षण है।
2 . गर्मियों में यहाँ की हरे-भरे घास के मैदान और जंगली फूल पूरे क्षेत्र को स्वर्ग जैसा बना देते हैं।
3 . सर्दियों में दूधपथरी बर्फ से ढक जाता है और तब यह स्कीइंग और स्नो ट्रेकिंग के लिए शानदार जगह बन जाती है।
4 . यहाँ से बहने वाली धाराएँ और नाले, विशेषकर शालीगंगा नदी, बेहद मनमोहक हैं।